Munnavar Rana ( मुनव्वर राना )में एक ऐसा नाम हैं जो माँ को बड़े ही सरल शब्दों में शायरियों ( Munnawar Rana Shayari in hindi ) के द्वारा लिखते हैं. मुन्नवर राणा द्वारा लिखी माँ के लिए शायरियां का कोई जोड़ नहीं हैं. कम से कम शब्दों में माँ के प्यार को लिखने की कला तो बस मुन्नवर राणा साहब ही जानते हैं.
मुनव्वर राना की जीवनी ( Munnawar Rana wiki in hindi)
मुनव्वर राणा का जन्म 1952 में उत्तर प्रदेश के रायबरेली में हुआ था, लेकिन उन्होंने अपना अधिकांश जीवन कोलकाता में बिताया. वह हिंदी और अवधी शब्दों का उपयोग करते हैं और फ़ारसी और अरबी से बचने की कोशिश करते हैं । यह उनकी कविता को भारतीय दर्शकों के लिए सुलभ बनाता है और काव्य में उनकी सफलता गैर-उर्दू क्षेत्रों में मिलती है.
मुनव्वर ने कई ग़ज़लें प्रकाशित की हैं । उनके अधिकांश शेरों की माँ उनके प्यार के केंद्र बिंदु के रूप में है,उर्दू साहित्य के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार (2014)। उन्होंने लगभग एक वर्ष बाद यह पुरस्कार लौटाया,
Munnawar Rana Shayari | मुनव्वर राणा शायरी की कलम में मानो खुद माँ का ही वास हो, उनकी कलम तो बस माँ के प्यार के लिए बनी हैं. मुन्नवर राणा द्वारा लिखी गयी माँ नामक किताब जो पुरे विश्व में मशहूर हैं.
प्रश्तुत हैं मुन्नवर राणा शायरी संग्रह .माँ पर उनके शेर एक अलग सेक्शन में दिया गया है
munawwar rana shayari
एक आँसू भी हुकूमत के लिए ख़तरा है
तुम ने देखा नहीं आँखों का समुंदर होना
मिट्टी में मिला दे कि जुदा हो नहीं सकता
अब इस से ज़ियादा मैं तिरा हो नहीं सकता
दहलीज़ पे रख दी हैं किसी शख़्स ने आँखें
रौशन कभी इतना तो दिया हो नहीं सकता
बस तू मिरी आवाज़ से आवाज़ मिला दे
फिर देख कि इस शहर में क्या हो नहीं सकता
ऐ मौत मुझे तू ने मुसीबत से निकाला
सय्याद समझता था रिहा हो नहीं सकता
इस ख़ाक-ए-बदन को कभी पहुँचा दे वहाँ भी
क्या इतना करम बाद-ए-सबा हो नहीं सकता
पेशानी को सज्दे भी अता कर मिरे मौला
आँखों से तो ये क़र्ज़ अदा हो नहीं सकता
दरबार में जाना मिरा दुश्वार बहुत है
जो शख़्स क़लंदर हो गदा हो नहीं सकता
munawwar rana shayari in hindi
munawwar rana shayari in hindi 2021
हाँ इजाज़त है अगर कोई कहानी और है
इन कटोरों में अभी थोड़ा सा पानी और है
मज़हबी मज़दूर सब बैठे हैं इन को काम दो
एक इमारत शहर में काफ़ी पुरानी और है
ख़ामुशी कब चीख़ बन जाए किसे मालूम है
ज़ुल्म कर लो जब तलक ये बे-ज़बानी और है
ख़ुश्क पत्ते आँख में चुभते हैं काँटों की तरह
दश्त में फिरना अलग है बाग़बानी और है
फिर वही उक्ताहटें होंगी बदन चौपाल में
उम्र के क़िस्से में थोड़ी सी जवानी और है
बस इसी एहसास की शिद्दत ने बूढ़ा कर दिया
टूटे-फूटे घर में इक लड़की सियानी और है
munawwar rana poetry
गले मिलने को आपस में दुआयें रोज़ आती हैं
अभी मस्जिद के दरवाज़े पे मायें रोज़ आती हैं
अभी रोशन हैं चाहत के दिये हम सबकी आँखों में
बुझाने के लिये पागल हवायें रोज़ आती हैं
कोई मरता नहीं है , हाँ मगर सब टूट जाते हैं
हमारे शहर में ऎसी वबायें* रोज़ आती हैं
अभी दुनिया की चाहत ने मेरा पीछा नहीं छोड़ा
अभी मुझको बुलाने दाश्तायें*रोज़ आती हैं
ये सच है नफ़रतों की आग ने सब कुछ जला डला
मगर उम्मीद की ठंडी हवायें रोज़ आती हैं
munawwar rana sher
बरसों से इस मकान में रहते हैं चंद लोग
इक दूसरे के साथ वफ़ा के बग़ैर भी
हालाँकि हमें लौट के जाना भी नहीं है
कश्ती मगर इस बार जलाना भी नहीं
हैतलवार न छूने की कसम खाई है लेकिन
दुश्मन को कलेजे से लगाना भी नहीं है
यह देख के मक़तल में हँसी आती है मुझको
सच्चा मेरे दुश्मन का निशाना भी नहीं है
मैं हूँ मेरा बच्चा है, खिलौनों की दुकाँ है
अब कोई मेरे पास बहाना भी नहीं है
पहले की तरह आज भी हैं तीन ही शायर
यह राज़ मगर सब को बताना भी नहीं है
munawwar rana maa shayari in urdu
गौतम की तरह घर से निकल कर नहीं जाते
हम रात में छुपकर कहीं बाहर नहीं जाते
बचपन में किसी बात पर हम रूठ गए थे
उस दिन से इसी शहर में है घर नहीं जाते
एक उम्र यूँ ही काट दी फ़ुटपाथ पे रहकर
हम ऐसे परिन्दे हैं जो उड़कर नहीं जाते
उस वक़्त भी अक्सर तुझे हम ढूँढने निकले
जिस धूप में मज़दूर भी छत पर नहीं जाते
हम वार अकेले ही सहा करते हैं ‘राना’
हम साथ में लेकर कहीं लश्कर नहीं जाते
मुनव्वर राना शायरी
किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई
मैं घर में सब से छोटा था मिरे हिस्से में माँ आई
यहाँ से जाने वाला लौट कर कोई नहीं आया
मैं रोता रह गया लेकिन न वापस जा के माँ आई
अधूरे रास्ते से लौटना अच्छा नहीं होता
बुलाने के लिए दुनिया भी आई तो कहाँ आई
किसी को गाँव से परदेस ले जाएगी फिर शायद
उड़ाती रेल-गाड़ी ढेर सारा फिर धुआँ आई
मिरे बच्चों में सारी आदतें मौजूद हैं मेरी
तो फिर इन बद-नसीबों को न क्यूँ उर्दू ज़बाँ आई
क़फ़स में मौसमों का कोई अंदाज़ा नहीं होता
ख़ुदा जाने बहार आई चमन में या ख़िज़ाँ आई
घरौंदे तो घरौंदे हैं चटानें टूट जाती हैं
उड़ाने के लिए आँधी अगर नाम-ओ-निशाँ आई
कभी ऐ ख़ुश-नसीबी मेरे घर का रुख़ भी कर लेती
इधर पहुँची उधर पहुँची यहाँ आई वहाँ आई
munawwar rana sher
ज़िंदगी तू कब तलक दर-दर फिराएगी हमें
टूटा-फूटा ही सही घर-बार होना चाहिए
हम सायादार पेड़ ज़माने के काम आए
जब सूखने लगे तो जलाने के काम आए
तलवार की नियाम कभी फेंकना नहीं
मुमकिन है दुश्मनों को डराने के काम आए
कच्चा समझ के बेच न देना मकान को
शायद कभी ये सर को छुपाने के काम आए
ऐसा भी हुस्न क्या कि तरसती रहे निगाह
ऐसी भी क्या ग़ज़ल जो न गाने के काम आए
वह दर्द दे जो रातों को सोने न दे हमें
वह ज़ख़्म दे जो सबको दिखाने के काम आए
मुनव्वर राना
munawwar rana best shayari in hindi
आप को चेहरे से भी बीमार होना चाहिए
इश्क़ है तो इश्क़ का इज़हार होना चाहिए
munnavar rana shayari on love
munawwar rana love shayari in hindi
भुला पाना बहुत मुश्किल है सब कुछ याद रहता है
मोहब्बत करने वाला इस लिए बरबाद रहता है
munawwar rana shayari on politics
कभी ख़ुशी से ख़ुशी की तरफ़ नहीं देखा
तुम्हारे बाद किसी की तरफ़ नहीं देखा
मैं इस से पहले कि बिखरूँ इधर उधर हो जाऊँ
मुझे सँभाल ले मुमकिन है दर-ब-दर हो जाऊँ
ये आब-ओ-ताब जो मुझ में है सब उसी से है
अगर वो छोड़ दे मुझ को तो मैं खंडर हो जाऊँ
मिरी मदद से खुजूरों की फ़स्ल पकने लगे
मैं चाहता हूँ कि सहरा की दोपहर हो जाऊँ
मैं आस-पास के मौसम से हूँ तर-ओ-ताज़ा
मैं अपने झुण्ड से निकलूँ तो बे-समर हो जाऊँ
बड़ी अजीब सी हिद्दत है उस की यादों में
अगर मैं छू लूँ पसीने से तर-ब-तर हो जाऊँ
मैं कच्ची मिट्टी की सूरत हूँ तेरे हाथों में
मुझे तू ढाल दे ऐसे कि मो’तबर हो जाऊँ
बची-खुची हुई साँसों के साथ पहुँचाना
सुनो हवाओ अगर मैं शिकस्ता-पर हो जाऊँ
munawwar rana maa shayari in hindi
ये सर-बुलंद होते ही शाने से कट गया
मैं मोहतरम हुआ तो ज़माने से कट गया
उस पेड़ से किसी को शिकायत न थी मगर
ये पेड़ सिर्फ़ बीच में आने से कट गया
वर्ना वही उजाड़ हवेली सी ज़िंदगी
तुम आ गए तो वक़्त ठिकाने से कट गया
munawwar rana shayari on maa
चलती फिरती आँखों से अज़ाँ देखी है
मैंने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखि है
Chalti firti hui aankhon se azan dekhi hai
Maine jannat to nahi dekhi hai maa dekhi hai
munawwar rana best Maa shayari
ऐ अँधेरे! देख ले मुँह तेरा काला हो गया
माँ ने आँखें खोल दीं घर में उजाला हो गया
Jab tak raha hoon dhoop me chaadar bana raha
Main apni Maa ka aakhiri jewar bana raha
munawwar rana maa
माँ के आगे यूँ कभी खुल कर नहीं रोना
जहाँ बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती
Maa ke aage yoon kabhi khul kar nahi rona
Jahan buniyaad ho itani nami achchhi nahi hoti
maa shayari munawwar rana
लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती
Labon pe uske kabhi baddua nahi hoti
Bas ek Maa hai jo kabhi khafa nahi hoti
best shayari on maa
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है
Is tarah mere gunaahon ko wo dho deti hai
Maa bahut gusse me hoti hai to ro deti hai
जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है
मां दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है
मुझे कढ़े हुए तकिये की क्या ज़रूरत है
किसी का हाथ अभी मेरे सर के नीचे है
Mujhe kadhe hue takiye ki kya jaroorat hai
Kisi ka haath abhi mere sar ke neeche hai
ख़ुद को इस भीड़ में तन्हा नहीं होने देंगे
माँ तुझे हम अभी बूढ़ा नहीं होने देंगे
Khud ko is bheed me tanha nahi hone denge
Maa tujhe hum abhi boodha nahi hone denge
दिन भर की मशक़्क़त से बदन चूर है लेकिन
माँ ने मुझे देखा तो थकन भूल गई है
Din bhar ki mashakkat se badan chur hai lekin
Maa ne mujhe dekha to thkan bhool gai hai
munnawar rana best shayari maa
दिया है माँ ने मुझे दूध भी वज़ू करके
महाज़े-जंग से मैं लौट कर न जाऊँगा
Diya hai Maa ne mujhe Doodh bhi wajoo karke
Mahaaze-jang se main laut kar na jaaunga
हादसों की गर्द से ख़ुद को बचाने के लिए
माँ ! हम अपने साथ बस तेरी दुआ ले जायेंगे
Haadson ki gard se khud ko bachaane ke liye
Maa hum apne saath bas teri dua le jayenge
बुज़ुर्गों का मेरे दिल से अभी तक डर नहीं जाता
कि जब तक जागती रहती है माँ मैं घर नहीं जाता
Bujurgon ka mere dil se abhi tak dar nahi jaata
Ki jab tak jaagti rahti hai Maa main ghar nahi jaata
ये ऐसा क़र्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता,
मैं जब तक घर न लौटूं, मेरी माँ सज़दे में रहती है
Ye aisa karz hai jo main adaa kar hi nahi sakta
Main jab tak ghar na lautoon, meri maa sazde me rahti hai
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