Insaniyat Shayari in hindi | इन्सानियत शायरी
इन्सानियत की रौशनी गुम हो गई है कहाँ,साए तो हैं आदमी के मगर आदमी कहाँ? Insaniyat Shayari मेरी जबान के मौसम बदलते रहते हैं,मैं तो इंसान हूँ मेरा ऐतबार कम करना। अदब के सारे खज़ाने गुजर गए,क्या खूब थे वो पुराने लोग गुजर गए,बाकी है बस जमीं पे आदमी की भीड़,इंसान को मरे हुए तो … Read more