साड्डा हक़ शायरी | Attitude Shayari Haq

Attitude Shayari | Haq Se Agar Do

हक़ से दो तो तुम्हारी नफरत भी कबूल हमें,
खैरात में तो हमें तुम्हारी मोहब्बत भी नहीं चाहिए

सूरज ढला तो कद से ऊँचे हो गए साये,
कभी पैरों से रौंदी थी ये परछाइयां हमने।

हम तो आँखों में संवरते हैं वहीं संवरेंगे,
हम नहीं जानते आईने ने कहाँ पनाह ली है ।

मुझको मेरे वजूद की हद तक न जान ,
मै बेहिसाब हूँ बेइन्तहा हूँ मैं ही भगवान् हु ।

साड्डा हक़ शायरी

तुम लोगो की, इस दुनिया में हर कदम पे इंसा गलत मै सही समझ के जो भी कहु तुम कहते हो गलत

हे इन गदारो में या उधारो में
तुम मेरे जीने की आदत का क्यों घोट रहे दम
बेसलीका मै उस गली का मै ना जिसमे हया, ना जिसमे शर्म
मन बोले के रस में जीने का हर्जाना दुनिया दुश्मन
सब बेगाना इन्हें आग लगाना
मन बोले मन बोले मन से जीना या मर जाना है
सद्दा हक़, एथे रख सद्दा हक़, एथे रख
सद्दा हक़, एथे रख सद्दा हक़, एथे रख
सद्दा हक़, एथे रख सद्दा हक़, एथे रख
सद्दा हक़, एथे रख सद्दा हक़, एथे रख

ओ इको फ्रेंडली, नेचर के रक्स मै भी हु नेचर
रिवाजो से समाँझो से क्यों
तू काटे मुझे क्यों बांटे मुझसे इस तरह
क्यों सच का सबक सिखाए जब सच सुन भी ना पाया
सच कोई बोले तो तू नियम कानून बताये
तेरा डर. तेरा प्यार. तेरी वाह. तू ही रख रख साले